शाजापुर (नि.प्र) जैन- जगत की विरल विश्व विभूति जगद्गुरु अकबर प्रति बोधक तपागच्छालंकार श्री हीर विजय सूरीश्वरजी महाराज साहब का आज स्वर्गगमन का दिन है। भारत के कोने-कोने में आज अहिंसा दिवस के रूप में यह दिवस मनाया जाएगा ।क्योंकि आपकी ही प्रेरणा से सम्राट अकबर ने समग्र भारतवर्ष में ६-६ माह तक हिंसा के तांडव को समाप्त करके अहिंसा का जयघोष गुंजित किया था ।
आचार्य श्री सच्चे अर्थों में एक महासंत थे एक विद्वान के शब्दों में देखें तो सिर्फ वेष का परिवर्तन नहीं. राग- विसर्जन -द्वेष- विसर्जन, मोहविसर्जन से व्यक्ति महान बनता है। जिसमें शब्दों की अभिव्यक्ति के साथ भावों की अनुभूति भी हो , स्व- जागरण के साथ सर्व- जागरण की ताकत भी हो ।करुणा व कृपा का जिसमें संगम हो ।
जगद् गुरु के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए अनुयोगाचार्य श्री वीररत्नविजयजी महाराज साहब ने कहा -ललाट पर हीरे जैसा तेज था ।अतः नाम रखा गया हीरजी ।अध्ययन काल समाप्त होने पर गुरुवर के प्रथम दर्शन होने पर हीर विजयजी ने खड़े-खड़े ही 108 नए काव्यों से वंदना - स्तवना की। दसवेंकालिक सहित लाखों सूत्र आपको कंठस्थ थे आप के आग्रह पर बादशाह ने हिंदुओं पर 14 करोड़ का कर माफ कर दिया। आचार्य श्री के प्रभावक व्यक्तित्व को देखकर सम्राट ने 1640 में जगद्गुरु का पद प्रदान किया। प्रथम मिलन पर सुरीश्वर के साथ 67 मुनिवर तथा 303 संघपति थे, राधनपुर पदार्पण पर गुरु भक्त देवसी शाह ने 6000 स्वर्ण मुद्रा से गुरु पूजन किया था ।1639 में आप ने अकबर को प्रतिबोध करके अहिंसा प्रेमी बनाया था। आपने 50 जिनालयो की प्रतिष्ठा की तथा 2500 श्रमणो का आपका शिष्य परिवार था ।
आचार्य श्री की तपस्या का भी एक विराट इतिहास रहा है ।तीन उपवास 225 बार ,2 उपवास 225 बार ,2000 आयंबिल,दो हजार नीवी,36०० उपवास ,२० बार वीशस्थानक,योगोव्दहन, जीवन भर पांच विगई का त्याग, सूरीपद के बाद भोजन में १२ द्रव्य से अधिक नहीं।
वर्तमान में जैन -श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के लगभग 10,000 साधु साध्वी में अधिकांश जगद्गुरु हीरसुरीश्वर जी के साम्राज्य में है ।चमत्कार था .स्वर्गगमन के दिन आसमान में देवविमान दर्शन ,बगीचे में आम का प्रकट होना .देवी गीत -संगीत का श्रवण।